भारतीय खेल इतिहास के ये हैं महान पल, जिनसे आप है अनजान
आज भारत में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में भी भारतीयों की रुचि बढ़ी है। इसकी बानगी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब देखने को भी मिल रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को खेल महाशक्ति बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भी खिलाड़ियों की मदद को आगे आए है, लेकिन अब भी यह नाकाफी है। एक समय ऐसा भी था जब खिलाड़ियों ने मुश्किल हालातों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ भारत का नाम रोशन किया बल्कि करोड़ों भारतीयों के आइकन बने। आइए, खिलाड़ियों द्वारा हासिल की गई उन उपलब्धियों पर नजर डालते हैं, जिसने भारत को न सिर्फ गौरवान्वित बल्कि भारतीय खेलों का इतिहास ही बदल डाला।
कर्णम मल्लेश्वरीः भारतीय महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने दस साल के शानदार करियर में 11 गोल्ड मेडल और तीन सिल्वर मेडल जीते है। उनकी सबसे बड़ी कामयाबी 2000 सिडनी ओलंपिक में भारत के लिए कांस्य पदक जीतना रहा। वे भारत की पहली महिला है, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता। उन्हें खेलों में योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार (1994), राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार (1995) और पद्मश्री (1999) से नवाजा गया है।
रामनाथन कृष्णनः भारत के रामनाथन कृष्णन 50 औ 60 के दशक के बेहतरीन टेनिस प्लेयर थे। उस वक्त वे न सिर्फ वर्ल्ड रैंकिंग में 6 नंबर पर काबिज हुए बल्कि 1960 और 1961 के विंबलडन सेमीफाइनल में भी पहुंचे थे। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे भारत के पहले टेनिस प्लेयर है। उन्होंने 1968 में टेनिस को अलविदा कहा। उन्हें खेल में योगदान के लिए पद्म श्री, अर्जुन अवार्ड और पद्म भूषण सम्मानित किया गया।
मिल्खा सिंहः भारत के खेलों में फ्लाइंग सिख मिल्खा के योगदान को कभी भुलाया नहीं भुलाया जा सकता। आजाद भारत के राष्ट्रमंडल खेलों में पहले स्वर्ण पदक विजेता एथलीट मिल्खा सिंह को 1956 मेलबर्न ओलम्पिक में अनुभवहीन करार दिया गया था। लेकिन अगले चार सालों में अपने खेल में सुधार कर वह 1960 रोम ओलम्पिक में उतरे, जहां 400 मीटर दौड़ में फाइनल से पहले हर हीट में मिल्खा दूसरे स्थान पर रहे। इस दिग्गज धावक ने फाइनल में सबसे तेज स्टार्ट लिया, लेकिन दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस ने उन्हें अंतिम सेकण्डों में पीछे छोड़ दिया और भारतीय एथलीट कांस्य पदक से चूक गए। मिल्खा ने 45.6 मिनट में वह दौड़ पूरी की और चौथे स्थान पर रहे। हालाकि मिल्खा कांस्य पदक से चूकने के बावजूद उन्हें भारतीय प्रशंसकों ने उन्हें अपने दिल में जगह दी।
मिहिर सेनः दिग्गज तैराक मिहिर सेन ने न सिर्फ भारत को तैराकी के क्षेत्र में दुनियाभर में विशिष्ट पहचान दिलाई, बल्कि उनकी उपलब्धि से देश के कई लोग लंबी दूरी की तैराकी के प्रति आकर्षित हुए। इस दिग्गज तैराक ने अपनी उपलब्धियों की शुरुआत इंग्लिश चैनल पार करके की और वह यह कारनामा करने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई थे। उन्होंने 27 सितंबर 1958 को 14 घंटे और 45 मिनट में इंग्लिश चैनल को पार किया जो एक रिकार्ड था। साल 1966 मिहिर में उन्होंने पांच महाद्वीपों के सात सागरों को तैरकर पार करने का रिकार्ड बनाया। सरकार ने भी इस दिग्गज तैराक की उपलब्धियों को मान्यता देते हुए 1959 में उन्हें पदमश्री से सम्माति किया जबकि 1967 में उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पदम भूषण से नवाजा गया।
प्रकाश पादुकोणः भारत में बैडमिंटन के कई महान एकल खिलाड़ी हुए हैं, लेकिन भारतीय बैडमिंटन के बारे में दुनिया के दृष्टिकोण पर सबसे गहरा असर पादुकोण ने डाला। इन्होंने ही सबसे पहले यह दिखाया था कि चीनियों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। पादुकोण ने न सिर्फ 9 बार नेशनल चैंपियन रहे बल्कि 1980 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीता और वे ऐसा करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने।
भारतीय हॉकीः 15 मार्च 1975 को भारतीय हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को 2-1 से हराकर खिताब इतिहास रचा था। भारतीय खिलाड़ी अजीत पाल और असलम शेर ने इस मैच में अपने करियर का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया था।
पीटी उषाः भारतीय ट्रैक एंज फील्ड की रानी" माने जानी वाली पीटी उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। वे प्रशंसकों के बीच "पय्योली एक्स्प्रेस" से जानी जाती है। 1980 मास्को ओलंपिक में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। लेकिन 1982 के नई दिल्ली एशियाड में उन्हें 100 मीटर व 200 मीटर में रजत पदक मिला। एक वर्ष बाद ही कुवैत में एशियाई ट्रैक और फील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। 1984 के लॉस एंजिलिस ओलंपिक की 400 मीटर बाधा दौड़ के सेमीफाइनल में वे प्रथम थीं। लेकिन फाइनल में पिछड़कर कांस्य पदक गंवा बैठी। 1986 में सियोल में हुए 10वें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पीटी उषा ने 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीते। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पांच स्वर्ण पदक जीते, साथ ही 4गुणा 400 रिले में उन्होंने कांस्य पदक जीता। इसके साथ ही किसी भी महिला द्वारा किसी एक ही दौड़ प्रतियोगिता में सबसे अधिक पदक जीतने का यह कीर्तिमान है। उषा ने 101 अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। उन्हें 1985 में पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
खाशाबा दादा साहब जाधवः भारत को पहला ओलंपिक मेडल दिलाने वाले पहलवान दाद साहेब जाधव ने 1952 में हुए हेलसिंग गेम्स में कुश्ती स्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इन्हें इनकी खेल प्रतिभा के कारण ''पॉकेट डायनेमो'' नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय फुटबॉल का स्वर्ण युगः 1951 से 1962 के कालखंड को भारतीय फुटबॉल का स्वर्ण युग माना जाता है। सैय्यद अब्दुल रहीम के प्रशिक्षण में भारतीय टीम एशिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बन गयी। भारतीय टीम ने 1951 के एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता, जिसकी मेजबानी भारत ने ही की थी। 1954 के एशियाई खेलों, जो कि मनीला में हुए थे, में भारत ने ग्रुप चरण में दूसरा स्थान प्राप्त किया। 1956 के ओलम्पिक खेलों में भारत ने चौथा स्थान प्राप्त किया। यह भारतीय टीम की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
आज भारत में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में भी भारतीयों की रुचि बढ़ी है। इसकी बानगी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब देखने को भी मिल रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को खेल महाशक्ति बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार भी खिलाड़ियों की मदद को आगे आए है, लेकिन अब भी यह नाकाफी है। एक समय ऐसा भी था जब खिलाड़ियों ने मुश्किल हालातों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ भारत का नाम रोशन किया बल्कि करोड़ों भारतीयों के आइकन बने। आइए, खिलाड़ियों द्वारा हासिल की गई उन उपलब्धियों पर नजर डालते हैं, जिसने भारत को न सिर्फ गौरवान्वित बल्कि भारतीय खेलों का इतिहास ही बदल डाला।
कर्णम मल्लेश्वरीः भारतीय महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने दस साल के शानदार करियर में 11 गोल्ड मेडल और तीन सिल्वर मेडल जीते है। उनकी सबसे बड़ी कामयाबी 2000 सिडनी ओलंपिक में भारत के लिए कांस्य पदक जीतना रहा। वे भारत की पहली महिला है, जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता। उन्हें खेलों में योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार (1994), राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार (1995) और पद्मश्री (1999) से नवाजा गया है।
रामनाथन कृष्णनः भारत के रामनाथन कृष्णन 50 औ 60 के दशक के बेहतरीन टेनिस प्लेयर थे। उस वक्त वे न सिर्फ वर्ल्ड रैंकिंग में 6 नंबर पर काबिज हुए बल्कि 1960 और 1961 के विंबलडन सेमीफाइनल में भी पहुंचे थे। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे भारत के पहले टेनिस प्लेयर है। उन्होंने 1968 में टेनिस को अलविदा कहा। उन्हें खेल में योगदान के लिए पद्म श्री, अर्जुन अवार्ड और पद्म भूषण सम्मानित किया गया।
मिल्खा सिंहः भारत के खेलों में फ्लाइंग सिख मिल्खा के योगदान को कभी भुलाया नहीं भुलाया जा सकता। आजाद भारत के राष्ट्रमंडल खेलों में पहले स्वर्ण पदक विजेता एथलीट मिल्खा सिंह को 1956 मेलबर्न ओलम्पिक में अनुभवहीन करार दिया गया था। लेकिन अगले चार सालों में अपने खेल में सुधार कर वह 1960 रोम ओलम्पिक में उतरे, जहां 400 मीटर दौड़ में फाइनल से पहले हर हीट में मिल्खा दूसरे स्थान पर रहे। इस दिग्गज धावक ने फाइनल में सबसे तेज स्टार्ट लिया, लेकिन दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस ने उन्हें अंतिम सेकण्डों में पीछे छोड़ दिया और भारतीय एथलीट कांस्य पदक से चूक गए। मिल्खा ने 45.6 मिनट में वह दौड़ पूरी की और चौथे स्थान पर रहे। हालाकि मिल्खा कांस्य पदक से चूकने के बावजूद उन्हें भारतीय प्रशंसकों ने उन्हें अपने दिल में जगह दी।
मिहिर सेनः दिग्गज तैराक मिहिर सेन ने न सिर्फ भारत को तैराकी के क्षेत्र में दुनियाभर में विशिष्ट पहचान दिलाई, बल्कि उनकी उपलब्धि से देश के कई लोग लंबी दूरी की तैराकी के प्रति आकर्षित हुए। इस दिग्गज तैराक ने अपनी उपलब्धियों की शुरुआत इंग्लिश चैनल पार करके की और वह यह कारनामा करने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई थे। उन्होंने 27 सितंबर 1958 को 14 घंटे और 45 मिनट में इंग्लिश चैनल को पार किया जो एक रिकार्ड था। साल 1966 मिहिर में उन्होंने पांच महाद्वीपों के सात सागरों को तैरकर पार करने का रिकार्ड बनाया। सरकार ने भी इस दिग्गज तैराक की उपलब्धियों को मान्यता देते हुए 1959 में उन्हें पदमश्री से सम्माति किया जबकि 1967 में उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पदम भूषण से नवाजा गया।
प्रकाश पादुकोणः भारत में बैडमिंटन के कई महान एकल खिलाड़ी हुए हैं, लेकिन भारतीय बैडमिंटन के बारे में दुनिया के दृष्टिकोण पर सबसे गहरा असर पादुकोण ने डाला। इन्होंने ही सबसे पहले यह दिखाया था कि चीनियों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। पादुकोण ने न सिर्फ 9 बार नेशनल चैंपियन रहे बल्कि 1980 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीता और वे ऐसा करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने।
भारतीय हॉकीः 15 मार्च 1975 को भारतीय हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को 2-1 से हराकर खिताब इतिहास रचा था। भारतीय खिलाड़ी अजीत पाल और असलम शेर ने इस मैच में अपने करियर का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया था।
पीटी उषाः भारतीय ट्रैक एंज फील्ड की रानी" माने जानी वाली पीटी उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। वे प्रशंसकों के बीच "पय्योली एक्स्प्रेस" से जानी जाती है। 1980 मास्को ओलंपिक में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। लेकिन 1982 के नई दिल्ली एशियाड में उन्हें 100 मीटर व 200 मीटर में रजत पदक मिला। एक वर्ष बाद ही कुवैत में एशियाई ट्रैक और फील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। 1984 के लॉस एंजिलिस ओलंपिक की 400 मीटर बाधा दौड़ के सेमीफाइनल में वे प्रथम थीं। लेकिन फाइनल में पिछड़कर कांस्य पदक गंवा बैठी। 1986 में सियोल में हुए 10वें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पीटी उषा ने 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीते। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पांच स्वर्ण पदक जीते, साथ ही 4गुणा 400 रिले में उन्होंने कांस्य पदक जीता। इसके साथ ही किसी भी महिला द्वारा किसी एक ही दौड़ प्रतियोगिता में सबसे अधिक पदक जीतने का यह कीर्तिमान है। उषा ने 101 अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। उन्हें 1985 में पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
खाशाबा दादा साहब जाधवः भारत को पहला ओलंपिक मेडल दिलाने वाले पहलवान दाद साहेब जाधव ने 1952 में हुए हेलसिंग गेम्स में कुश्ती स्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इन्हें इनकी खेल प्रतिभा के कारण ''पॉकेट डायनेमो'' नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय फुटबॉल का स्वर्ण युगः 1951 से 1962 के कालखंड को भारतीय फुटबॉल का स्वर्ण युग माना जाता है। सैय्यद अब्दुल रहीम के प्रशिक्षण में भारतीय टीम एशिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बन गयी। भारतीय टीम ने 1951 के एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता, जिसकी मेजबानी भारत ने ही की थी। 1954 के एशियाई खेलों, जो कि मनीला में हुए थे, में भारत ने ग्रुप चरण में दूसरा स्थान प्राप्त किया। 1956 के ओलम्पिक खेलों में भारत ने चौथा स्थान प्राप्त किया। यह भारतीय टीम की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।