विश्व रक्तदान दिवस विशेषः रक्त दान महादान, रक्तदाता रखें यह ध्यान


सभ्यता का विकास तेजी से होने के बावजूद आज मनुष्य रक्तदान करने से घबराता है। नतीजन, रक्तदान के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद लोगों को रक्त खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए 1997 में 14 जून को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली थी। तब से हर 14 जून को विश्व रक्त दान दिवस मनाया जाता है।

भारत में रक्त की जरूरतः
दुनिया में रक्तदान में कमी आने सर्जरी आदि की वजह से खून की मांग में इजाफा होने से मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में विश्व स्वास्थ संगठन इस कमी को दूर करने के लिए प्रयासरत है और 2020 तक उसका लक्ष्य है कि सभी देश अपनी जरूरत के मुताबिक, रक्तदाताओं से रक्त एकत्रित कर सकें। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल औसतन चार करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है, लेकिन रक्त की अनुपलब्धता की वजह से लाखों लोगों की असमय मौत हो जाती है।



रक्दान को लेकर भ्रांतियाः
भारत में रक्त दान को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां है। इसके चलते लोग रक्तदान करने से बचते हैं। कई लोग सोचते हैं कि रक्तदान से शरीर में कमजोरी आती है, नियमित रक्तदान से रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है, बीमारियां बढ़ने की संभावना रहती है आदि। लेकिन यह सही धारणा नहीं है। अलबत्ता शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि रक्तदान करने वालों को हार्ट अटैक की बीमारी कम होती है। इतना ही नहीं कैंसर और अन्य कई बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है।



रक्तदान के संबंध में क्या कहता है चिकित्सा विज्ञानः
मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया चलती रहती है। रक्तदान के फौरन बाद बोर्न मैरो शरीर में नई रक्त कोशिकाएं बना देता है, जितना मनुष्य रक्त दान करता है, उसकी पूर्ति शरीर खुद--खुद 72 घंटे में कर लेता हैं। एक अहम बात यह भी है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड तीन माह में स्वयं डेड हो जाते हैं, लिहाजा हर स्वस्थ मनुष्य तीन माह में एक बार रक्त दान कर सकता है।





रक्तदाता रखें इसका ध्यानः
हाल ही में आरटीआई के जरिए पता चला है कि भारत में अक्टूबर 2014 से लेकर मार्च 2016 के बीच एचआईवी संक्रमण के 2234 मामले संक्रमित खून चढ़ाने की वजह से सामने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई ब्लड बैंक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिसकी वजह से लोग जानलेवा बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।

इस बाबत नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ( नाको) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल नरेश गोयल का कहना है कि दान किए गए खून में से 84 फ़ीसदी ब्लड यूनिट स्वेच्छा से दान किए गए हैं और लगता है कि यही समस्या की जड़ हैक़ानून के मुताबिक़ दान दिए गए खून की एचआईवी, एचबीवी, हैपेटाइटिस सी, मलेरिया, और सिफलिस की जांच होनी चाहिए। ये मामले सामने आने के बाद रक्तदाताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो खून की जांच के बाद ही रक्तदान कराए, जिससे जानलेवा बीमारियों को जड़ से समाप्त करने में मदद हो सके। 


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